है कोई ऐसा सांसद जो शिक्षा मंत्री पद और शिक्षा मंत्रालय के साथ सत प्रतिशत न्याय कर सके

भारत में अब पेट्रोलियम मंत्री शिक्षा मंत्री का पद संभालेंगे 

सरकारों की ये प्राथमिकता होनी चाहिए की जहा जिसकी जरुरत हो उसके हिसाब से मंत्रालय का पद दिया जाना चाहिए चाहे केंद्र की सरकार हो या राज्य की | यहाँ बात हो रही हैं मोदी कैबिनेट में अकल्पनीय फेरबदल की जो केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया साहसिक कदम हैं और यह निर्णय देशहित में हैं | वैसे तो मंत्रालयों में फेरबदल राजनीतिक हितो को साधने के लिए किया जाता हैं परन्तु ये एक अकल्पनीय और अभूतपूर्व फेरबदल हैं जिसमे मंत्रालयों के पदों की कमान नए चेहरों के साथ साथ उन चेहरों को सौपी गयी हैं जिन्होंने खुद को साबित किया हैं | फिर चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया हो या सर्वानंद सोनोवाल, स्मृति इरना हो या किरेन रिजिजू | कुछ चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाया गया हैं जो अपने आप को साबित नहीं कर पाए जैसे डॉ हर्षवर्धन, रवि शंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, रमेश पोखरियाल निशंक, थावर चंद गेहलोत जो केंद्र सरकार में प्रमुख चेहरे थे |




राष्ट्रवादी जो चाहते थे वही हुआ लेकिन एक गलत निर्णय भी लिया गया हैं जिसके बारे में बताना राष्ट्रवादियों का प्रमुख कर्त्तव्य हैं | धर्मेंद्र प्रधान जो की भारत सरकार में पेट्रोलियम मंत्री थे | उन्हें इस मंत्रालय से हटाकर शिक्षा मंत्री का पद सँभालने को कहा गया हैं | जहा शिक्षा के छेत्र में नए नए कीर्तिमान स्थापित करने हैं वहा पेट्रोलियम मंत्री कहा तक साथ दे पायेगा | ये तो एक तरह से शिक्षा मंत्रालय  को नज़र अंदाज़ करने जैसा हैं | जो व्यवहार पूर्व शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने दिखाया वैसी ही कार्य शैली धर्मेंद्र प्रधान की दिखाई पड़ती हैं यानी भारतीय शिक्षा को सुधारने की दिशा में कोई कदम न उठाना | इसलिए राष्ट्रवादी चिंतित हैं की इतिहास की पुस्तकों में जो छेड़छाड़ की गयी इसलामी और वामपंथियों द्वारा उसे कैसे दुरुस्त किया जाये जब शिक्षा मंत्री ही किसी ऐसे व्यक्ति को बना दिया गया हो जो शिक्षा मंत्री पद के लिए काबिल ही न हो |




ऐसा नहीं हैं की भाजपा के पास ऐसे सांसदों की कमी हैं जो शिक्षा मंत्री का पद बखूबी संभाल सकते हैं लेकिन उन्हें ये जिम्मेदारी सौपी नहीं जा रही | यहाँ बात हो रही हैं राज्य सभा सांसद डॉ सुधांशु त्रिवेदी की जो शिक्षा मंत्री के पद के लिए राष्ट्रवादियों की पहली पसंद हैं | लेकिन पता नहीं क्यों उन्हें ये पद नहीं सौपा जा रहा | डॉ सुधांशु त्रिवेदी एक ऐसे सांसद हैं जो जमीन से जुड़े हुए हैं, अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं और जिन्हे इतिहास से लेकर विज्ञान तक काफी अच्छी समझ हैं | भारत को इस समय एक शिक्षा मंत्री की जरुरत हैं क्यूंकि वही भारत के भविष्य की दिशा और दशा तय करेगा | लेकिन कभी निशंक तो कभी प्रधान इस तरह से गोल गोल घूमने से कुछ नहीं होने वाला जब तक किसी योग्य व्यक्ति को शिक्षा मंत्रालय की बागडोर नहीं सौप दी जाती | भारत सरकार नयी शिक्षा नीति लागू करना चाहती हैं, मात्र भाषा को बढ़ावा देना चाहती हैं लेकिन शिक्षा मंत्री का पद बौनों को थमाना चाहती हैं ऐसा कब तक चलेगा |

 



हो सकता हैं धर्मेंद्र प्रधान शिक्षा मंत्री पद के लिए मूल्यवान सिद्ध हो लेकिन उनके पिछले कार्यकाल को देखकर ऐसा कहा नहीं जा सकता इसलिए हमे कुछ महीने इंतज़ार करना होगा यह तय करने के लिए की जिस काम के लिए धर्मेंद्र प्रधान को शिक्षा मंत्री पद की जिम्मेदारी सौपी गयी क्या वो उसको ठीक से निभा पा रहे हैं या नहीं | यदि वे इसमें असमर्थ सिद्ध होते हैं तो हमे अपनी आवाज़ मुखर करनी होगी और सुधांशु त्रिवेदी को शिक्षा मंत्री पद की जिम्मेदारी सौपनी होगी | इतिहास लेखन इसलिए जरूरी हैं क्यूंकि हम इसको सुधारने में जितना विलम्ब कर रहे हैं यह हमारी नयी पीड़ी को उतनी ही तीव्र गति से बर्बाद कर रहा हैं उनके पथ को दिग्भ्रमित कर रहा हैं | आशा हैं केंद्र सरकार हम राष्ट्रवादियों के सुझाव पर अवश्य गौर करेगी और शिक्षा मंत्री पद और मंत्रालय के साथ सत प्रतिशत न्याय करेगी और भारत राष्ट्र की नीव को मजबूत करने का काम करेगी |







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