बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं। छात्रों के शैक्षिक विकास के लिए यह वरदान है या अभिशाप?

 

बहुत दिनों से बारहवीं कक्षा के बच्चो की परीक्षाओं को लेकर केंद्र सरकार सभी जिम्मेदार संघठनो से चर्चा कर रही थी कि कोविद महामारी के समय बारहवीं के छात्र व छात्राओं की परीक्षा करवाना  उचित हे या नहीं | अंत में फैसला छात्रों के पक्ष में आया | परन्तु क्या इस फैसले के आ जाने से बच्चो कि समस्या हल हो गयी, उत्तर हैं नहीं | परीक्षा रद्द होने से  कुछ देर कि खुशी तो स्वाभाविक हैं परन्तु इसके दूरगामी दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं | 




पहला विचार तो मन में ये आता हैं कि यदि केंद्र ने परीक्षा रद्द करने का फैसला किया हैं तो जाहिर सी बात हैं उसके कुछ मापदंड रहे होंगे | मेरे विचार में बच्चो ने इस साल पढाई कि ही नहीं या यू कहे कि इस साल बच्चो को वो माहौल मिला ही नहीं जिसके वो हक़दार थे | ऑनलाइन शिक्षा के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं था | और ऑनलाइन माद्यम से शिक्षा ग्रहण करना ये उनके लिए नया अनुभव था | इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने  पाठ्यक्रम को छोटा करने कि मांग कि जिससे छात्र अपने मन मष्तिष्क पर ज्यादा जोर ना डाले और तनाव मुक्त रहे | 

ये तो हमने हाल में हुए घटनाक्रम पर बात की परन्तु अब हम जो बात करेंगे वह तय करेगा कि क्या वाकई बच्चो को इस फैसले से लाभ होने वाला हैं ?




एक एक करके हर एक पहलू पर विचार करते हैं, सबसे पहला विचार मन में आता हैं कि यदि परीक्षा नहीं होगी तो किस प्रकार कि परीक्षा ली जाएगी यह तय करने के लिए कि कौन किस्से ज्यादा आगे हैं | और इसी बिंदु पर मैं आप सभी छात्रों का ध्यान केंद्रित करवाना चाहता हूँ कि कोई भी संस्था या संगठन स्किल कि बात नहीं कर रहा सब परीक्षा पर चर्चा कर रहे हैं, यही देश का दुर्भाग्य हैं | जब लिखित परीक्षाएं छात्रों का भविष्य तय करने लगती हैं  तो उस व्यवस्था में समझ के पढ़ने से ज्यादा रट के पढ़ना महत्वपूर्ण हो जाता हैं | लेकिन रट के पढ़ना परीक्षाओं के लिए तो मूल्यवान सिद्ध हुआ हैं परन्तु उसमे और एक अनपढ़ में कोई भेद नहीं | हमारी व्यवस्था का इसी तरह से निर्माण किया गया, यह इशाईयोँ द्वारा भारत पर थोपी गयी शिक्षा का नमूना हैं  जिसने हमारे गुरुकुल जैसी शिक्षा पद्धति को नष्ट किया जो कि मौजूदा व्यवस्था से हजार गुना अच्छी और परिणाम देय थी |




परीक्षा रद्द होने से अच्छी बात यह हैं कि छात्र तनाव  मुक्त हो चुके हैं और उन्हें ख़ुशी हैं कि उनका मार्ग ये लिखित परीक्षा प्रशस्त नहीं करेगी जो कि उन के लिए वरदान जैसा हैं , लेकिन अभिशाप इसलिए हैं क्यूंकि आगे की शिक्षा व्यवस्था लिखित परीक्षा के ही ऊपर निर्भर करती हैं विश्वविद्यालयों में दाखिले से लेकर किसी भी सरकारी संस्था में नौकरी के लिए आवेदन भरने तक | और इस सड़ी गली व्यवस्था के ऊपर आरक्षण छात्रों के मनोबल को तोड़ने जैसा हैं जिसके पश्चात उसका शिक्षा व्यवस्था से यकीन पूरी तरह समाप्त हो जाता हैं और वह फिर खुद कुछ नया करने की सोचता हैं तब तक काफी समय उसका बर्बाद हो चुका होता हैं जिसको कोई भी संस्था वापस नहीं लोटा सकती | इसी बर्बादी को रोकने से हमे बचाना हैं और लिखित परीक्षा को हटाकर एक ऐसी शिक्षा नीति तैयार करनी हैं जो भविष्य में आने वाले छात्रों का मार्ग प्रशष्त कर सके वो भी बिना किसी भेदभाव के | जिससे भारत का भविष्य और भी उज्जवल और सार्थक सिद्ध हो | 





 






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